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यादें कोच्चि (Kochi) की: ब्लोगर्स, बीच और क्रिसमस (भाग- 1)

कोच्चि (या कोचीन ) का नाम आते ही प्राचीनता और ऐतिहासिकता स्वतः ही जेहन में आ जाती है, कोच्चि भारत के दक्षिण छोर पर केरल राज्य के तटवर्ती जिले ‘एर्नाकुणम’ का एक शहर है | इसका महत्त्व सांस्कृतिक के साथ साथ व्यावसायिक भी काफी है |

ये तो रहा शहर के बारे में एक संक्षिप्त परिचय, अब बताते है अपनी यात्रा का अनुभव…….,

पोस्ट के शीर्षक में “ब्लोगर्स” शब्द बताता है कि मेरी इस यात्रा का ब्लोगिंग से जरूर कुछ ना कुछ कनेक्शन रहा होगा, हाँ तो बताते है, दरअसल इंडीब्लोगर (IndiBlogger) पर निसान इंडिया (Nissan India) द्वारा प्रायोजित एक कॉन्टेस्ट था, जिसका विषय था – ‘सड़क सुरक्षा (Road Safety)’

जिसमे से टॉप 5 विजेता को कोच्चि में हो रहे Nissan Safety Driving Forum (NSDF) के इवेंट में भाग लेना था, उसके 5 विजेतायों में से किन्हीं दो विजेतायों के कोच्चि जाने में असमर्थता जताने पर, मुझे मौका दिया गया | मेरी इस कॉन्टेस्ट में भेजी गयी पोस्ट को यहाँ से पढ़ सकते है |

दिल्ली से जाने वाले प्रतिभागियों में मेरे अलावा दिल्ली से ही ब्लोगर  Manjulika Pramod थी, उनकी पोस्ट आप यहाँ से पढ़ सकते है | इनके अलावा मुंबई से Khushboo Motihar, चेन्नई से Kishore Kumar और जयपुर से Prasad Np जी थे ..

हमारी फ्लाइट ने हम लोगों कोच्चि में करीब 11:00 am पर पंहुचा दिया, दिल्ली से चले थे ..पूरी तरह पैक होगे ..तब भी सुबह सुबह कंपकंपी वाली हालत …कोच्चि में हम स्वेटर, जर्सी वाले इक्का-दुक्का लोग …सिर्फ अपनी ही तरफ देख रहे थे …कि कब ये गरम कपडे उतारे ..और कुछ राहत  मिले |

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एयरपोर्ट से आगे का रास्ता, साईट-सीइंग  और ठहरने के ठिकाने के लिए हम लोगों को कोई चिंता करने की आवश्यकता नहीं थी, सारा कुछ पहले से ही तय था, एयरपोर्ट पर कैब आ गयी थी, वहां से कैब में बैठे …और वहां से पहले होटल जाना ही उचित समझा |

एयरपोर्ट से होटल की दूरी करीब 35 km थी, उस दूरी के बीच भी काफी कुछ नया देखने को मिला …और कुछ वहीँ पुराना जो दिल्ली जैसा ही था …पहला आश्चर्य मुझे तब हुआ जब कैब में हिंदी गाने बजते हुए सुने …तब कैब ड्राईवर का परिचय जानने की भी उत्सुकता हुई ..तब पता चला कि वो हिंदी में अच्छी तरह से बात कर सकते है …और एक्स-सर्विस मैन थे CRPF के  ..

रास्ते में दिल्ली से जो अलग बात दिखाई दी वो थी लोकल ट्रांसपोर्ट …बड़े स्तर पर आपको लाल रंग की प्राइवेट बसें ही दिखाई देंगी, जो कुछ कुछ तो दिल्ली में पहले चलने वाली ब्लू-लाइन बसों जैसी लगती है, नया इनमे ये था …कि किसी भी बस में खिडकियों के शीशे नही थे …कारण समझ नही पाया …दूसरे दिन Prasad जी ने इसका एक कारण बताया कि द. भारत में वामपंथियों का प्रभुत्व ज्यादा होने की वजह से आये दिन हड़ताल, चक्का जाम, पथराव होना आम बात है , इसीलिए यहाँ के बस मालिक शीशा लगवाते ही नही है ……Smile

 

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ये पिक्चर मेरे कैमरे की खींची हुई नही है, कैब में चलते चलते संभव भी नहीं हो पा रहा था, कि फोटो ले सकूँ, तो इसके मूल फोटोग्राफर का आभारी हूँ मैं….

इसके अलावा भी बहुत कुछ नया था ..जैसे दिल्ली के तरह राजनीतिक पार्टियों के विज्ञापनों से पड़ी पड़ी दीवारें नही थी, नारियल और केले के पेड़ों की बहुतायत, फॉर्मल वेशभूषा में पेंट की लुंगी, दिल्ली के पानी के ठेले की जगह पर नारियल पानी के ठेले ..आदि आदि |

अब बताते है कि दिल्ली और यहाँ एक जैसा क्या था …वो था ..ट्रेफिक जाम, मनमानी ड्राइविंग स्टाइल (चाहे तो इसे इंडियन स्टाइल ऑफ़ ड्राइविंग कह सकते हैं), मेट्रो का कंस्ट्रक्शन ….

जी हाँ, मेट्रो का कंस्ट्रक्शन …पहली बार तो मुझे भी लगा कि कहीं दिल्ली में ही तो नहीं है …क्योंकि यहाँ के मेट्रो का भी काम DMRC के सहयोग से ही किया जा रहा है, अब आप यही द्श्य देखिये …

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आपको बता दूँ …कि ‘मेट्रोमैन’ श्रीधरन जी भी केरल से ही हैं और कोच्चि मेट्रो में भी श्रीधरन जी का अहम योगदान रहने वाला है |

ट्रेफिक की बात करूँ …तो हालात बहुत ही ख़राब थे …ड्राईवर ने स्पष्टीकरण जरूर दिया कि आज छुट्टी का दिन है …और कोच्चि का एकमात्र और सबसे बड़ा शोपिंग मॉल …लुल्लु मॉल (Lullu Mall) ..भी रास्ते में है ..इस वजह से ज्यादा जाम है …पर ये बात मुझे तो पची नही ….

कभी कभार तो लगता है कि अपने देश की ये बेहद गंभीर समस्या बनती जा रही है …और दूसरी तरफ हमारे नीति निर्माताओं की  इसमें कोई गंभीरता दिखती नही है |

ट्रेफिक में धीरे धीरे चलते हुए हम लोग होटल पहुँच गए होंगे …करीब 1:30 pm के आस पास ….फिर वहां से निकलें होंगे करीब 2:30 – 3:00 pm के आस पास …

अब हम लोगों को तय करना था कि शाम तक ..कम समय में कौन से साईट देखकर वापस आया जा सकता था …होटल के  सबसे पास था …”परदेसी सिनगॉग”

1. परदेसी सिनगॉग (Pardesi synagogue) :

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 जी हाँ, सिनगॉग (synagogue) - यहूदी उपासनागृह,  जिसका नाम “परदेसी” शब्द से शुरू होता है, हैं ना रोचक, रोचक के साथ साथ ये काफी पुराना और ऐतिहासिक भी है, इसके नाम में जो “परदेसी” शब्द लगता है, उसका कारण ये है कि ये मूलतः स्पेनिश बोलने वाले यहूदियों द्वारा बनवाया गया था |

ये सिनगॉग अपने आप में इसलिए भी काफी महत्त्व रखता है कि पूरे राष्ट्रकुल (कॉमनवेल्थ) देशों में ये एकलौता सबसे पुराना सक्रिय सिनगॉग है | ये कोचीन के सबसे पुराने टाउन में से एक “जू टाउन (Jew Town)” में स्थित है |

“जू टाउन (Jew Town)” और “जू स्ट्रीट (Jew Street)” अपने आप में ही विरासत है, जहाँ भारत के यहूदियों की एक बड़ी संख्या रहती है |

पर दुर्भाग्यवश जब हम लोग  सिनगॉग (synagogue) पहुंचे तो ये बंद था, क्योंकि ये शनिवार को बंद रहता है, पर कोई बात नही, हमारे पास कल (रविवार) का समय और था, दूसरे दिन (रविवार) को हम लोगों ने सिनगॉग (synagogue) अन्दर से भी देखा |

अन्दर तो फोटोग्राफी की अनुमति नही थी, पर अगर आप अन्दर की वास्तुशिल्प देखना चाहें तो विकिपीडिया पर उपलब्ध ये एल्बम देख सकते हैं |

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"Jewish synagouge kochi india". Licensed under CC BY 2.5 via Wikimedia Commons.

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"Kochi Jewish Synagogue C" by Wouter Hagens - Own work. Licensed under Public Domain via Wikimedia Commons.

अपने आप में इतनी प्राचीन (सन 1567 ) विरासत को देखने का अनुभव ही बेहद अहम् रहा मेरे लिए …

इसके हम लोग “जू टाउन (Jew Town)” और “जू स्ट्रीट (Jew Street)” होते हुए …वापस होटल की तरफ निकल पड़े …पूरे दिन की थकान तो थी ही ..और साथ में अन्य साथी ब्लोगरों (चेन्नई और मुंबई से आने वालों ) से मिलने की जल्दी, सो फिर रास्ते में कुछ नहीं देखने की सोची, और अँधेरा भी हो चुका था |

२. “मैरीन ड्राइव बीच ” ( Marine drive, Kochi)

पर जैसे कैब ड्राईवर ने बताया कि “मैरीन ड्राइव बीच ” आ गया है, तो फिर मुझसे नही रहा गया, सारी थकान को एक तरफ रखकर …निकल  पड़े क्रिशमश के चलते ….दिवाली की तरह सजाये गए ..”मैरीन ड्राइव” …पर ..थकान के बावजूद ..करीब करीब आधा कि.मी. बीच चलते चलते पार किया ..तब पहुंचे मुख्य आकर्षक “रेनबो ब्रिज” पर …

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"Marine Beauty 3 DSW" by Augustus Binu/ www.dreamsparrow.net/ facebook - Own work. Licensed under CC BY-SA 3.0 via Wikimedia Commons.

उसके बाद सीधे होटल …

ये थी मेरी पोस्ट की पहली किश्त ..दूसरे दिन के लिए दूसरी पोस्ट की लिंक जल्दी ही शेयर करूँगा | 

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