Wednesday

आप सभी को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं

आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं |

Republic Day Wallpaper 4

साथ की एक गीत आपके लिए:

देश प्रेमियों

आज के माहौल को देखकर, कुछ पंक्तियाँ (शायद “निराला” जी की) साझा कर रहा हूँ |

जाने क्या क्या है छुपा हुआ,
                         सरकार तुम्हारी आँखों में |
झलका करता है, राम-राज्य का. 
                        प्यार तुम्हारी आँखों में |
मनचाही मांगीं जमानते,
                       मन चाहा, तब धावा बोल दिया |
’सी सम-सम” ताला बंद हुआ,
                       ’सी सम-सम” ताला खोल दिया |
चालीस चोर का खेल प्रेस-
                      अखबार तुम्हारी आँखों में |

11 comments:

  1. न जाने कैसा लोकतन्त्र, पल रहा तुम्हारी आँखों में।
    आपको भी बधाईयाँ।

    ReplyDelete
  2. गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.....

    ReplyDelete
  3. गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामना

    ReplyDelete
  4. आपको भी बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं राहुल जी

    ReplyDelete
  5. गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

    ReplyDelete
  6. गणतंत्र दिवस पर आपको भी ढेरों शुभकामनायें

    जय हिंद!

    ReplyDelete
  7. पूरे देश में गणतंत्र दिवस मनाने की तैयारी शुरू हो गई है। गणतंत्र दिवस को राष्ट्रीय उत्सव भी कहा जाता है। स्कूलों और सरकारी संस्थानों में यह उत्सव मनाना अतिआवश्यक है। सवाल यह उठता है कि क्या कोई भी उत्सव थोपा जाना चाहिए?

    कितने लोग इसे मन से... मनाते होंगे? उत्सव क्या बाध्यता से मनाए जाने चाहिए? ऐसा उत्सव जिसे बाध्य करके मनवाया जाता हो उसे उत्सव कहना क्या उचित होगा।

    इसे राष्ट्रीय उत्सव कहना राष्ट्र और उत्सव दोनों शब्दों के साथ मजाक करना है। इसे राजकीय उत्सव तो कहा जा सकता है, परंतु राष्ट्रीय उत्सव कभी नहीं। क्या मतलब है उस राष्ट्रीय उत्सव का, जिसको राष्ट्र के सभी नागरिक ही अपने मन से नहीं मनाते हों।

    हम सभी को इस पर भी अवश्य विचार करना चाहिए कि आखिर वह कौन-सा कारण है कि देश के नागरिकों को इसका मतलब समझ में नहीं आता है। और अगर मतलब समझ में आता है और फिर भी स्वयं से मनाना नहीं चाहते हैं। तो ये तो और भी ज्यादा चिंता का विषय है।

    क्या इसे हम सरकार कि विफलता नहीं कहेंगे कि साठ साल बाद भी उसका राष्ट्रीय उत्सव देश के आम आदमी तक नहीं पहुंच पाया है। आम आदमी तो इसके पीछे के इतिहास को समझ ही नहीं सका, तो वह इसे हर्षोउल्लास से कैसे मना सकता है।

    वास्तव में आजादी मिलने के बाद अपने देश में एक नई संस्कृति और नया राष्ट्र बनाने कि कोशिश शुरू की गई थी। इसलिए इस राष्ट्र से जुड़ी सारी प्राचीन चीजों को नष्ट करके नई संस्कृति को शुरू करने का प्रयास किया गया। नए नेताओं ने व महापुरुषों ने नया इतिहास रचाने कि कोशिश की।

    अगर पुरानी अस्मिता को नष्ट करके हमारे देश की और राष्ट्र की भलाई होती तो लोग आज परेशान न होते बल्कि आज हम देखते हैं कि पुराने जीवन मूल्यों और परंपराओं कि उपेक्षा करने से समस्याए बड़ी ही हैं कम नहीं हुई।

    गणतंत्र दिवस को यदि संविधान स्थापना समारोह के रूप में मनाया जाए तो फिर भी सही है। परंतु इसे राष्ट्रीय उत्सव कहना उचित नहीं है। जो उत्सव देश के आम आदमी को उत्साहित नहीं करता उसे राष्ट्रीय उत्सव कैसे कहें।

    गणतंत्र दिवस को मनाने में जनता का बहुत सारा पैसा लगता है, जो देश के विकास कार्यों के लिए बाधा बन जाता है तो क्या इसे मनाना उचित है?

    अब से साठ साल पहले भारत की जनता से जो वादे करते हुए यहां संविधान लागू किया गया था, देश के ज्यादातर लोग अभी तक उनका अपने लिए कोई मतलब नहीं निकाल पाए हैं।। गणतंत्र के सबसे ऊंचे और असरदार ओहदे कुछ हजार परिवारों में सिमट कर रह गए हैं। कानून इनके हर स्याह-सफेद की रक्षा करता है और कानूनी दायरे से बाहर चले जाने पर भी इनका कुछ नहीं बिगड़ता। और तो और, ये ही लोग सिलेब्रिटी या रोल मॉडल बनकर अब मीडिया के जरिए देश को जीने का सलीका सिखा रहे हैं। शायद हर साल 26 जनवरी मनाने की आदत डालकर हम भूल ही गए हैं कि गणतंत्र नाम की चिड़िया सिर्फ बैठना नहीं, उड़ना भी जानती है।

    ReplyDelete
  8. मूल संविधान कहता है कि किसी जाति या वंश में जन्मा व्यक्ति श्रेष्ठ नहीं है। हर नागरिक भारतीय है और सभी के अधिकार समान हैं, तभी भारतीय हर्ष पूर्वक वर्षगांठ के रूप में प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस मनाते आ रहे हैं और मूल संविधान की वर्षगांठ मनानी भी चाहिए, जबकि संशोधित संविधान किसी-किसी को अहम घोषित करता स्पष्ट नजर आ रहा है। गाली, मारपीट, हत्या या किसी भी तरह की घटना पर दो तरह के कानून स्पष्ट नजर आ रहे हैं। जाति के आधार पर ही अलग-अलग धारायें लगाने का प्रावधान है, इतना ही नहीं जाति के आधार पर ही रोजगार तक के अवसर दिये व छीने जा रहे हैं। लोकतंत्र भी कहने को ही बचा है, क्योंकि जनप्रतिनिधि चुनने की भी आजादी छीन ली गयी है। जाति के आधार पर जनप्रतिनिधि चुनने का भी कानून बना दिया गया है, ऐसे में सवाल यह भी उठ रहा है कि जाति के आधार पर दिये जा रहे आरक्षण के चलते जिन जातियों के लोगों के अधिकारों का हनन हो रहा है, वह गणतंत्र दिवस क्यूं मनायें ?

    ReplyDelete
  9. संविधान के अनुसार नागरिकों को समानता का अधिकार मिला हुआ है, जिसके अनुसार जाति व वंश के आधार पर कोई श्रेष्ठ या हीन नहीं है। देश या कानून की नजर में सब एक समान ही हैं, लेकिन आरक्षण की व्यवस्था ने इस अधिकार के मायने ही बदल दिये हैं। समानता के अधिकार के बीच स्पष्ट रूप से आरक्षण व्यवस्था आड़े आने लगी है। आरक्षण का मूल उदेद्श्य समाज के दबे-कुचले लोगों की आर्थिक व सामाजिक स्थिति सुदृढ़ कर समतामूलक समाज की स्थापना करना ही था, लेकिन अब वही आरक्षण गंभीर समस्या बनती रहती है, वहीं आरक्षण का लाभ आरक्षण के दायरे में आने वाली सभी जातियों के सभी लोगों को भी नहीं मिल पा रहा है। भ्रष्टाचार का राक्षस इतना प्रभावी हो गया है कि आरक्षण का लाभ संबधित जातियों के दस या पन्द्रह प्रतिशत धनाढ्य लोग ही उठा पा रहे हैं, साथ ही आरक्षण विहीन जातियों के लोगों को लगने लगा है कि आरक्षण के चलते उनके अधिकारों का हनन किया जा रहा है।क्यों ???

    ReplyDelete
  10. आरक्षण से समाज के किसी वर्ग को कोई आपत्ति न थी और न है, पर घृणित राजनीति के चलते किसी न किसी राज्य में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति व पिछड़े वर्ग में एक-दो जाति को और शामिल कर दिये जाने का क्रम चलता ही रहता है, जिससे सामान्य वर्ग में सवर्ण कही जाने वाली कुछेक अंगुलियों पर गिनने लायक ही जातियां बची हैं और जो बची हैं, उनमें भी उनके जातिगत संगठन या राजनीतिक दल आरक्षण के दायरे में लाने की मांग करते देखे जा सकते हैं और हो सकता है, एक दिन बाकी बची जातियों को भी आरक्षण के दायरे में शामिल करा दिया जाये, ऐसे में सिर्फ ब्राह्मण, ठाकुर व वैश्य ही बचेंगे, जबकि आज के आंकड़े बताते हैं कि अब इन तीनों जातियों या सामान्य वर्ग में आने वाली सभी जातियों की भी आर्थिक या सामाजिक स्थिति सुदृढ़ नहीं है।

    ReplyDelete
  11. मैंने मेरे मन की भडास निकाली है ,,,मुझे नहीं मानना है यह दिवस ,,,,नहीं देना है बधाई किसी को ,,,,,

    ReplyDelete