हिंदी भाषा को अगर उसके बोलने वालों की संख्या और भौगोलिक प्रसार की द्रष्टि से देखा जाए, तो पता चलता है कि हिंदी विश्व की मुख्य भाषायों की सूची में एक अहम् स्थान रखती है | पर अगर इसको इन्टरनेट पर प्रचार प्रसार की द्रष्टि से देखा जाए, तो अन्य भाषायों (अंग्रेजी को छोड़कर) से काफी पीछे है |
जब इसके कारणों पर चर्चा करते हैं तो कई कारण है जो सामने आते हैं, जैसे जो हिंदी पढता, बोलता है वो इन्टरनेट पर बहुत कम संख्या में हैं, हिंदी में इन्टरनेट पर ज्यादा कंटेंट नही हैं, हिंदी लिखना आसान नही है इत्यादि इत्यादि |
पर अगर हम सभी कारणों पर अगर ध्यान से सोचें तो पता चलता है कि ठीक इसके उल्ट चाहे वो सिनेमा हो या टी.वी. या फिर विज्ञापन की दुनिया, वहां हिंदी को लेकर नए प्रयोग भी किये जा रहे हैं, जैसे क्रिकेट के पुर्णतः हिंदी चैनल और भी सभी न्यूज़ और डेलीशॉप भी हिंदी में ही हैं …और वो अच्छा भी कर रहे हैं,
कुल मिलाकर कह सकतें हैं कि टी.वी. एडवरटाइजिंग और सिनेमा में हिंदी को अंग्रेजी से कोई खतरा नही दिखता …तो यहाँ तो हिंदी को अगर व्यावसायिक (Commercial) नजर से देखा जाए…तब भी काफी सफल है |
तो ऐसा क्या है ..जो इन्टरनेट पर हिंदी की रफ़्तार को मंद किये हुए है ?
पहला तर्क हो सकता है कि हिंदी पढने और बोलने वाले ज्यादा संख्या में इन्टरनेट इस्तेमाल नही करतें है ….मैं इस तर्क से सहमत नही, क्योंकि युवा से लेकर वरिष्ठ नागरिकों तक ..बड़ी तादात है जो हिंदी बोलती है और इन्टरनेट यूज कर रही है |
ऐसा भी नही है कि हिंदी में साइट्स की कमी है …लगभग सभी बड़ी बड़ी साइट्स के ‘हिंदी वर्जन' हैं …जैसे फेसबुक, गूगल, जी-मेल, IRCTC सभी की हिंदी साइट्स हैं |
जो हिंदी लिखने की बात आती है, वहां पर भी अब गूगल और माइक्रोसॉफ्ट और कई अन्य के इनपुट टूल्स आने के बाद हिंदी लिखना बहुत ही आसान हो गया है |
तो फिर क्या कारण है ?
मेरे अनुसार …लोग हिंदी बोलते तो हैं ..पर पढ़ने या लिखने से कतराते हैं |
इसमें दो बातें हैं, लोग तभी तो पढेंगे या सर्च करेंगे …जब उन्हें सामग्री हिंदी में उपलब्ध मिलेगी |
और ज्यादातर स्वदेशी ब्लोगर/लेखक भी अंग्रेजी में ही लिखते हैं ..अब उनका तर्क होता है …कि हिंदी कोई पढ़ता नही हैं और पाठकों का तर्क होता है …कि हिंदी में कोई लिखता नही |
इन दोनों में बेहतर बैलेंस ही हिंदी के स्थिति को सुद्रढ़ कर सकता है …हिंदी में जब अच्छा लिखा जायेगा …तो कुछ हो सकता है ..आगे
पर मैं तो सकारात्मक हूँ …कई लोग तथा संस्थाएं इस दिशा में अपना अथक योगदान दे रहीं हैं , पर इसमें प्रशासन को अब निर्लज्जता को त्यागकर …हिंदी के लिए खानापूर्ति छोड़कर सार्थक प्रयास करने होंगे ..ऐसा चाइना ने कर दिखाया है …अपनी “भाषा" को लेकर …हम क्यों नहीं कर सकतें है |
मुझे इस पर और भी कारण जानने हैं, कृपया अपनी राय जरूर दें |
test
ReplyDeletetest
ReplyDeleteयह ब्लॉग मेरे मन अंतरतम के उद्गार के रुप में देखता हूँ|जब फेसबुक पर अंग्रेजी भाषा में पोस्ट को देखकर मन में आता है कि - क्यों न मात्र एक बटन के क्लिक से पूरा का पूरा मेटर हिंदी भाषा में उपलब्ध हो जाये -अथवा- कोई ऐसे भी अनुवाद-सहयोगी मिल जाये तो कितना अच्छा हो|हिंदी के प्रोत्साहन अत्यंत आवश्यकता है, परन्तु लिखने के लिए कोई सुगम विधि प्राप्त नहीं होने के कारन रोमन का प्रयोग धडल्ले से हो रहा है जो हिंदी प्रयोग के गलत दिशा में अग्रसर है |
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